Wednesday 27 April 2011

सपनें


तपती  दोपहरी सूरज की अगन ,
        नहीं करनें देती कुछ काम |
धरती पर हम आये हैं तो ,
          मोजमस्ती में  बीते हर शाम |
कल  क्या होगा किसे खबर है ,
           आज तो सोनें दो चादर तान |
गगनचुम्बी सतरंगी सपनें अपनें ,
       हें चाँद-तारों से भी  हसीन |
कहीं कहानियों मैं सुना है, 
  शायद सिनेमा में भी देखा है |
होता है एक जादुई चिराग,       
  काश मिल जाए अगर मुझे |
 तो हो जाए मेरा भी उद्धार  ,
अरज  करूँ तुझसे है पालनहार  |  

2 comments:

  1. बहुत मजा आया पढ़ कर |
    काश ऐसा हो पाता |
    आशा

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  2. सभीको उस जादुई चिराग की आवश्यकता है ! बहुत रोचक रचना !

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