अलग -अलग रिश्तों से ,
जुड़ी हुई भावनाएं विभिन्न |
कहीं शहद सा माधुर्य है ,
कहीं विषाक्त होता मन |
जुड़ी हुई भावनाएं विभिन्न |
कहीं शहद सा माधुर्य है ,
कहीं विषाक्त होता मन |
उन्मीलित हे प्रज्ञाचक्षु ,
आत्मा है मोह पाश में |
सर्वत्र आडम्बर का डेरा है ,
सत्य जान कर भी हैं अनभिज्ञ |
ये कैसा चातुर्य है मानस का ,
कर देता अपनों को अपनों से दूर |
क्यों सुषुप्त हो गए जज्बात ,
रिश्तों में कैसा नफा -नुकसान |
काश कभी सोच पाते इंसान ,
आज का भी कल भविष्य होगा |
आत्मा है मोह पाश में |
सर्वत्र आडम्बर का डेरा है ,
सत्य जान कर भी हैं अनभिज्ञ |
ये कैसा चातुर्य है मानस का ,
कर देता अपनों को अपनों से दूर |
क्यों सुषुप्त हो गए जज्बात ,
रिश्तों में कैसा नफा -नुकसान |
काश कभी सोच पाते इंसान ,
आज का भी कल भविष्य होगा |
ह्रदय में उठते ज्वार का बहुत सुंदर चित्रण किया है |बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteआशा
बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteउन्मीलित हे प्रज्ञाचक्षु ,
आत्मा है मोह पाश में |
सर्वत्र आडम्बर का डेरा है ,
सत्य जान कर भी हैं अनभिज्ञ |
गहन चिंतन से परिपूर्ण पंक्तियाँ ! यही जीवन का सत्य है ! इतनी अच्छी अभिव्यक्ति के लिये बधाई !