Saturday 5 March 2011

अनमोल बचपन

जुबां पर है बहुत कुछ, पर लब नहीं खुलते|
कलम है हाथ में, पर शब्द नहीं मिलते|
अतीत की परत पलटती हूँ, तो खो जाती हूँ बचपन में|
अनगिनत सुखद यादे, तारों सी झिलमिला रहीं हैं|
कल सी खुशी, आज क्यों नहीं महसूस होती?
शायद बड़ा होना भी एक सजा है,
जो दूर कर देता है|
मजबूरीवश अपनों को अपनों से |





3 comments:

  1. बहुत सुन्दर भाव लिए कविता |
    बहुत बहुत बधाई प्रथम कविता के लिए |
    आशा

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  2. अरे वाह ! बहुत ही प्यारी कविता है ! बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें ! तुमसे बहुत सारी आशाएं हैं और तुम्हारी रचनाएं हमारे मन का आँगन इसी तरह महकाती रहेंगी यही अपेक्षा है ! ब्लॉग जगत में तुम्हारा स्वागत है !

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