Wednesday 16 March 2011

समयचक्र

 अनवरत घूम रहा है समय का अदृश्यमान  चक्र,
अगले पल क्या घटित होगा उससे बेखबर |
सबकी आंखों में हैं भविष्य के सुंदर सपनें,
उनको पूरी करनें की है प्रबल अभिलाषा|

 पाई-पाई संचित कर, घरोंदा सजाया था |
 जिन अपनों को  जतन से पाला था  ,
आज  उन्हें अपनें से ही दूर जाते देखा है |


कल  जिन्हें अपनीं   सुंदरता पर गर्व  था ,
आज उन्हें शारीरिक वेदना  से जूझते देखा है| 
 त्रासदी नें पल भर में ही बदल दिया मंजर ,
समयचक्र पर इन्सान का बस नहीं चलता है |

2 comments:

  1. समय कह कर नहीं आता ना ही उसे किसी बंधन मैं बांधा जा सकता है |बहुत अच्छी लगी रचना |बधाई
    आशा

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  2. जीवन के शाश्वत यथार्थ से रू-ब-रू कराती सार्थक प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर रचना ! होली की हार्दिक शुभकामनाएं !

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