अनवरत घूम रहा है समय का अदृश्यमान चक्र,
अगले पल क्या घटित होगा उससे बेखबर |
सबकी आंखों में हैं भविष्य के सुंदर सपनें,
उनको पूरी करनें की है प्रबल अभिलाषा|
पाई-पाई संचित कर, घरोंदा सजाया था |
जिन अपनों को जतन से पाला था ,
आज उन्हें अपनें से ही दूर जाते देखा है |
कल जिन्हें अपनीं सुंदरता पर गर्व था ,
आज उन्हें शारीरिक वेदना से जूझते देखा है|
त्रासदी नें पल भर में ही बदल दिया मंजर ,
समयचक्र पर इन्सान का बस नहीं चलता है |
अगले पल क्या घटित होगा उससे बेखबर |
सबकी आंखों में हैं भविष्य के सुंदर सपनें,
उनको पूरी करनें की है प्रबल अभिलाषा|
पाई-पाई संचित कर, घरोंदा सजाया था |
जिन अपनों को जतन से पाला था ,
आज उन्हें अपनें से ही दूर जाते देखा है |
कल जिन्हें अपनीं सुंदरता पर गर्व था ,
आज उन्हें शारीरिक वेदना से जूझते देखा है|
त्रासदी नें पल भर में ही बदल दिया मंजर ,
समयचक्र पर इन्सान का बस नहीं चलता है |
समय कह कर नहीं आता ना ही उसे किसी बंधन मैं बांधा जा सकता है |बहुत अच्छी लगी रचना |बधाई
ReplyDeleteआशा
जीवन के शाश्वत यथार्थ से रू-ब-रू कराती सार्थक प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर रचना ! होली की हार्दिक शुभकामनाएं !
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